अक्षय तृतीया का महत्व, पूजा का मुहूर्त और पूजन विधि

अक्षय तृतीया को आखातीज भी कहा जाता है। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ माना जाता है। इस दिन किया हुआ तप, दान अक्षय फलदायक होता है। इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं।

अक्षय तृतीया को आखातीज भी कहा जाता है। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ माना जाता है। इस दिन किया हुआ तप, दान अक्षय फलदायक होता है। इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में पड़ता है तो महा फलदायक माना जाता है। इस दिन प्रातः काल पंखा, चावल, नमक, घी, चीनी, सब्जी, फल, इमली, वस्त्र के दान का बहुत महत्व माना जाता है।

कैसे करें पूजा  

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित की जाती है। इसके बाद फल, फूल, बरतन तथा वस्त्र आदि ब्राह्मणों को दान के रूप में दिये जाते हैं। इस दिन ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।  

पूजा का मुहूर्त  

अक्षय तृतीया पर इस वर्ष पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय सुबह 6 बजकर 7 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक है। इसके अलावा यदि आप सोना खरीदना चाह रहे हैं तो 18 अप्रैल को दोपहर तीन बजकर 45 मिनट से लेकर 19 अप्रैल 2018 के दोपहर 1 बजकर 29 मिनट तक खरीद सकते हैं।  

भगवान देते हैं दर्शन

  इस दिन श्री बद्रीनारायण जी के पट खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। इस दिन ठाकुर द्वारे जाकर या बद्रीनारायण जी का चित्र सिंहासन पर रखकर उन्हें भीगी हुई चने की दाल और मिश्री का भोग लगाते हैं। कहते हैं भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।

दान प्रधान है यह पर्व  

यह पर्व दान प्रधान माना गया है। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान बेहद पुण्यदायी माना गया है। पंचांग के मुताबिक यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है।  

कर सकते हैं कोई भी मांगलिक कार्य

  इस पर्व के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह−प्रवेश, वस्त्र−आभूषणों की खरीददारी या घर, वाहन आदि की खरीददारी आदि कार्य किये जा सकते हैं। पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस दिन अपने पितरों को किया गया तर्पण भी अक्षय फल प्रदान करता है। लोग इस दिन गंगा स्नान करते हैं क्योंकि मान्यता है कि इससे तथा भगवत पूजन से उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। पुरानी मान्यता यह भी है कि इस दिन यदि अपनी गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगी जाए तो वह माफ कर देते हैं।  

खूब खरीदें सोना  

यह माना जाता है कि इस दिन ख़रीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है।   

कथा−

अक्षय तृतीया का महत्व युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था। तब श्रीकृष्ण बोले, ‘राजन! यह तिथि परम पुण्यमयी है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है। इसी दिन से सतयुग का प्रारम्भ होता है। इस पर्व से जुड़ी एक प्रचलित कथा इस प्रकार है−   प्राचीन काल में सदाचारी तथा देव ब्राह्म्णों में श्रद्धा रखने वाला धर्मदास नामक एक वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था। इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से व्रत के माहात्म्य को सुना। कालान्तर में जब यह पर्व आया तो उसने गंगा स्नान किया। विधिपूर्वक देवी देवताओं की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूं, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएं ब्राह्मणों को दान कीं। स्त्री के बार−बार मना करने, कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म कर्म और दान पुण्य से विमुख न हुआ। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई।  

-शुभा दुबे

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