
नागपुर. धर्म पर हो रहे हमलों का प्रतिकार करने का माध्यम कीर्तन है, यह विचार विजयकाका पोफळी ने कीर्तन महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर व्यक्त किया। यह महोत्सव रामनगर स्थित पुण्यश्लोक अहल्यादेवी होळकर कीर्तन परिसर में आयोजित किया गया। संवेदना परिवार संस्था और पश्चिम नागपुर नागरिक संघ के संयुक्त आयोजन में आयोजित इस महोत्सव का उद्घाटन आज सायं हुआ। उद्घाटन समारोह में विजयकाका पोफळी के अलावा स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पोते सात्यकी सावरकर, योगगुरू रामभाऊ खांडवे, सारंग गडकरी, शैलेश पांडे, विवेक हुसुकले, जगदीश मिहानी, परिणिती फुके, अॅड. आनंद परचुरे और अन्य प्रमुख व्यक्तियां उपस्थित थीं। विजयकाका पोफळी ने अपने संबोधन में कहा कि, “कीर्तन प्राचीन काल में समाज सुधार का महत्वपूर्ण औजार था। वर्तमान में धर्म पर हमले हो रहे हैं, और इन हमलों का प्रतिकार करने के लिए कीर्तन एक प्रभावी माध्यम बन गया है।” सात्यकी सावरकर ने कहा कि सावरकर का हिंदुत्व विचार आज के समय में अत्यंत आवश्यक है। यह विचार हिंदू समाज के एकत्व और उनके अधिकारों के संरक्षण का संदेश देता है। सावरकर के विचारों में जातिभेद का उन्मूलन और समानता की स्थापना का पक्ष है, जो आज भी प्रासंगिक हैं। कार्यक्रम में आरती की सारी राशी वनवासी कल्याण आश्रम को दी गई, जिसे नीता किटकरू ने स्वीकार किया। महोत्सव के आयोजन में कुणाल नरसापूरकर, सागर कोतवालीवाले, निशांत अग्निहोत्री, राजीव काळेले और अन्य कार्यकर्ताओं का अहम योगदान रहा। राष्ट्रीय कीर्तनकार चारुदत्त आफळे ने ‘बंगाल के क्रांतिकारियों की गाथा’ पर एक विशेष कीर्तन प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बंगाल का योगदान अतुलनीय है और यह भूमि अनेक क्रांतिकारियों की जन्मभूमि रही है।