
नागपुर. महाराष्ट्र के समस्त गवली समाज द्वारा पिछले 40 वर्षों से आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक विकास के लिए एक स्वतंत्र “श्रीकृष्ण आरती विकास मंडल” की स्थापना की मांग की जा रही है। लेकिन राज्य सरकार ने जाति आधारित आर्थिक विकास महामंडल की स्थापना से इनकार कर दिया है। इस दौरान, युति सरकार ने राज्य में लिंगायत, गुरव, रामोशी, वडार, राजपूत, ब्राह्मण, आर्यवैश्य, तेली, लोणारी, जैन, बारी, हिंदू खाटिक, सोनार आदि 13 जातियों के लिए स्वतंत्र आर्थिक विकास मंडलों की स्थापना की। ऐसे में, पिछले 40 वर्षों से महाराष्ट्र में मौजूद 22 उपजातियों वाले गवली समाज की इस महत्वपूर्ण मांग को राज्य सरकार ने क्यों नजरअंदाज किया, यह बात समाज के जानकारों के लिए एक सवाल बनी हुई है। गवली समाज द्वारा प्रस्तावित महामंडल से सरकारी खजाने पर अधिक आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ेगा, इसके बावजूद युति सरकार की असमान नीति और भेदभाव के कारण समाज में गहरी नाराजगी फैल गई है। राज्य-स्तरीय “गवली समाज कृती समिति” पिछले चार महीनों से लगातार सरकार से संवाद कर रही है। जुलाई महीने में राज्य के 28 जिलों में जिला अधिकारियों के माध्यम से मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्रियों और विधानसभा के विपक्ष के नेता को ज्ञापन सौंपा गया था। इसके अलावा, युति सरकार के विधायकों और पालकमंत्रियों के माध्यम से भी सरकार से बार-बार निवेदन किया गया। महाराष्ट्र में लगभग 60 लाख की आबादी वाले गवली समाज को आखिर क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है, इस पर सवाल उठ रहे हैं। इसी उपेक्षित नीति के विरोध में नागपुर विधानसभा परिसर में “एक दिवसीय सांकेतिक धरना” आयोजित किया गया। गवली समाज कृती समिति के प्रदेश पदाधिकारियों ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से जानकारी दी कि विधानसभा को ध्यान में रखते हुए विभिन्न जाति समाजों के लिए स्वतंत्र आर्थिक विकास मंडलों की घोषणा करने वाली सरकार, गवली समाज को न्याय दिलाने में असफल रही है। इस धरने में प्रदेश संयोजक इंजीनियर अशोक भाले, नागपुर के संयोजक शैलेश हातबुडे, मदन साखरकर, प्रभाकर देशमुख, विजय देशमुख समेत अन्य पदाधिकारी और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहे।