
आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ सूचना की गति पहले से कहीं अधिक तेज़ है। सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स और ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल्स ने हर व्यक्ति को एक सूचना वाहक बना दिया है। लेकिन इसी गति के साथ बढ़ी है एक और गंभीर समस्या—फेक न्यूज़ की। फेक न्यूज़ यानी झूठी या भ्रामक जानकारी, जो जानबूझकर किसी को गुमराह करने के उद्देश्य से फैलाई जाती है, अब न केवल समाज को भ्रमित कर रही है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी हिला रही है। चुनाव के समय मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गढ़ी गई ख़बरें, साम्प्रदायिक तनाव भड़काने वाले वीडियो, और झूठे आँकड़े—इन सबका प्रभाव अब सिर्फ वर्चुअल नहीं रहा, वह ज़मीनी हकीकत बन चुका है। इस समस्या की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आम नागरिक को अक्सर यह पता नहीं चलता कि कौन-सी सूचना सत्य है और कौन-सी गढ़ी गई है। एक झूठी ख़बर जितनी तेजी से फैलती है, उतनी तेज़ी से उसे खंडन करना मुश्किल होता है। सरकार और तकनीकी कंपनियों को इस दिशा में मिलकर काम करने की ज़रूरत है। फेक न्यूज़ फैलाने वालों के खिलाफ कठोर कानून बनाए जाएँ, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को ऐसे कंटेंट को फैलने से रोकने की ज़िम्मेदारी दी जाए। इसके साथ ही, नागरिकों में डिजिटल साक्षरता बढ़ाना भी उतना ही ज़रूरी है। हर नागरिक को यह समझना होगा कि “शेयर” करने से पहले “सत्यापित” करना ज़रूरी है। क्योंकि जब तक हम खुद जागरूक नहीं होंगे, तब तक किसी भी व्यवस्था से इस चुनौती का समाधान संभव नहीं। डिजिटल युग में सूचनाएँ शक्ति हैं, और इस शक्ति का सही उपयोग ही एक सशक्त लोकतंत्र की बुनियाद बन सकता है।