डॉ. उदय डोकरस – इतिहास, धरोहर और शोध का अद्वितीय संगम”

नागपुर. नागपुर के गौरवशाली इतिहासकार डॉ. उदय डोकरस पर विशेष संपादकीय हमें गर्व और खुशी है कि हम नागपुर के प्रख्यात इतिहासकार, लेखक और दक्षिण-पूर्व एशिया के प्राचीन राजवंशों, वैदिक एवं बौद्ध वास्तुकला के विशेषज्ञ डॉ. उदय डोकरस पर यह विशेष संपादकीय प्रस्तुत कर रहे हैं। डॉ. डोकरस ने अब तक 1070 पुस्तकें लिखी हैं और उनके पाठकों की संख्या दस लाख से अधिक है। नागपुर ने कई महान विभूतियाँ देश को दी हैं और डॉ. उदय डोकरस इस सूची में सर्वोच्च स्थान रखते हैं। डॉ. डोकरस नागपुर के प्रसिद्ध डोकरस परिवार से हैं। उनके पिता VNIT (पूर्व में रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज) के पहले डीन थे और इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) के अध्यक्ष भी रहे। अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए डॉ. डोकरस ने नागपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की और फिर कनाडा व स्वीडन से स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 30 वर्षों पूर्व लेखन शुरू किया और अब तक 1070 पुस्तकें तथा 3000 से अधिक शोधपत्र लिखे हैं। उनके लेखन की रफ्तार और विविधता इतनी अधिक है कि उसे समझ पाना भी एक चुनौती है। धम्म और मंदिर विषयों पर उनका कार्य अद्वितीय है। उन्होंने जैन धर्म पर ही 250 से अधिक शोध लेख लिखे हैं, जिनमें से 27 पुस्तकें हैं। नागपुर के जैन और व्यावसायिक समुदाय के प्रमुख सदस्य श्री निखिलभाई कुसुमगर (निदेशक, अरिहंत मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल, नागपुर एवं एम/एस एन.के. कुसुमगर एंड कंपनी) ने उनके कार्य की सराहना की है। डॉ. डोकरस की विशेषज्ञता न केवल भारत में बल्कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भी स्थापित है, जहाँ हजारों वर्ष पूर्व भारतीय संस्कृति का विस्तार हुआ था। उन देशों में कभी संस्कृत आधिकारिक भाषा थी और हिन्दू धर्म प्रमुख था। बाद में कुछ देशों ने बौद्ध धर्म को अपनाया और विशाल स्तूपों व मंदिरों का निर्माण किया। दुर्भाग्यवश, इन क्षेत्रों में ऐतिहासिक लेखन और पांडुलिपियाँ नष्ट हो चुकी हैं, जिससे धार्मिक और स्थापत्य तथ्य जुटाना अत्यंत कठिन कार्य है। इनकी खोज और विश्लेषण के लिए भारी परिश्रम, शोध और कल्पना शक्ति की आवश्यकता होती है — जिसे डॉ. डोकरस ने सिद्ध किया है। उनके योगदान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली है। उन्हें फ्रांसीसी, अमेरिकी और भारतीय समाचार माध्यमों ने साक्षात्कार हेतु आमंत्रित किया है और हजारों लेखकों ने अपने शोध में उनका उल्लेख किया है। उन्होंने द्वारावती (थाईलैंड), वंदन (कंबोडिया/वियतनाम), बोरोबुदुर (इंडोनेशिया), पांडुरंग (दक्षिण मध्य वियतनाम) और अंकोरवाट (कंबोडिया) जैसे प्राचीन राजवंशों और स्थलों की खोज की है। इन दूरवर्ती स्थानों के नाम कभी श्रेष्ठपुरा, सिंहपुरा, योग्यकार्ता, सूर्यकर्ता, यशोधरपुरा, इंद्रपुर, पांडुरंगा और अमरावती हुआ करते थे, जो भारतीय सभ्यता के प्रभाव को दर्शाते हैं। हमारे पाठकगण गूगल पर उनके कार्य को अवश्य खोजें और उनके भविष्य के कार्यों के लिए शुभकामनाएँ दें। नागपुर और भारत को डॉ. डोकरस पर गर्व है।

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