
Desk News. तिब्बत में रविवार तड़के भूकंप के तेज झटकों से धरती कांप उठी। भारतीय समयानुसार यह भूकंप सुबह 2:41 बजे आया। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5.7 मापी गई। इसका केंद्र तिब्बत क्षेत्र में जमीन से 10 किलोमीटर की गहराई में था, जिसकी स्थिति 29.02 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 87.48 डिग्री पूर्वी देशांतर पर दर्ज की गई। भूकंप के झटके तिब्बत के अलावा आसपास के इलाकों और भारत के कुछ हिस्सों में भी महसूस किए गए। फिलहाल किसी तरह के जान-माल के नुकसान की खबर नहीं है। स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबंधन टीमें अलर्ट पर हैं और स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। तिब्बत पिछले कुछ हफ्तों से लगातार भूकंप के झटकों महसूस किए गए हैं। 9 मई 2025 को रात 8 बजकर 18 मिनट पर एक बार फिर भूकंप ने इस क्षेत्र को हिला दिया। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 3.7 मापी गई। तिब्बत वैसे भी भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। बीते कुछ हफ्तों में आए झटकों ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है। हालांकि, इस ताज़ा भूकंप में अब तक किसी बड़े नुकसान या जनहानि की सूचना नहीं मिली है। स्थानीय प्रशासन हालात पर नजर बनाए हुए है और नागरिकों से सतर्कता बरतने की अपील की गई है। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, हाल ही में आया भूकंप केवल 10 किलोमीटर गहराई में आया था। इतनी कम गहराई में आने वाले भूकंप ज़्यादा खतरनाक माने जाते हैं क्योंकि ये सतह के करीब होते हैं, जिससे ज़मीन पर झटके तेज़ महसूस होते हैं और आफ्टरशॉक्स (भूकंप के बाद आने वाले झटके) की आशंका भी ज़्यादा रहती है। यह पहला मामला नहीं है जब हाल के दिनों में भूकंपीय गतिविधि दर्ज की गई हो। इससे पहले 23 अप्रैल 2025 को तिब्बत क्षेत्र में दो लगातार झटके महसूस किए गए थे। पहला झटका शाम 6:24 बजे आया जिसकी तीव्रता 3.9 रही। इसके कुछ देर पहले शाम 5:25 बजे 3.6 तीव्रता का एक और भूकंप दर्ज किया गया। दोनों ही भूकंप 10 किलोमीटर गहराई पर आए थे। तिब्बत दुनिया के सबसे भूकंपीय रूप से संवेदनशील इलाकों में से एक है। यह क्षेत्र भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स की सीमा पर स्थित है, जहां दोनों प्लेट्स लगातार एक-दूसरे की ओर खिसक रही हैं। इससे ज़मीन के भीतर तनाव बनता है, जो समय-समय पर भूकंप के रूप में बाहर आता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस टेक्टोनिक टकराव के चलते तिब्बत में बड़े भूकंप आने की संभावना हमेशा बनी रहती है, और उथले भूकंप ज़मीन की सतह पर कहीं ज़्यादा असर डाल सकते हैं।