
नागपुर. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन चरित्र प्रेरणादायक है और अगर हम उनके जीवन से कुछ अंश भी ग्रहण करें, तो भारत एक ऐसा देश बनेगा जो पूरे विश्व को दिशा दिखाएगा, यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने कही। उन्होंने कहा कि समाज में जैसा परिवर्तन हम चाहते हैं, उसके लिए हमें पहले खुद को वैसा बनाना होगा। वे ‘माँ भारती के सारथी: दीनदयाल उपाध्याय’ इस महानाट्य के विमोचन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे, जिसे लेखक-कवि दयाशंकर तिवारी ‘मौन’ ने लिखा है। यह कार्यक्रम मोर हिंदी भवन में आयोजित किया गया था। समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में कराड स्थित कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के मुख्य सलाहकार डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा, पूर्व महापौर दयाशंकर तिवारी और लेखक दयाशंकर तिवारी ‘मौन’ मंच पर उपस्थित थे। भारतीय संस्कृति और परंपराओं का महत्व बताते हुए डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि जीवन संघर्ष के सिद्धांत पर आधारित है और आज तक इस संघर्ष से निपटने के लिए कई प्रयोग किए गए, लेकिन जीवन में सुख और शांति स्थापित करने में ये सभी प्रयास विफल रहे हैं। भौतिक प्रगति, जो चरम पर पहुंच रही है, मानवता को विनाश की ओर ले जा रही है, यह विचार आज पूरे विश्व में स्वीकार्य हो रहा है। ऐसे में भारतीय परंपराएं सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत ने सभी प्रकार के विचारों को आत्मसात किया है। यहां आस्तिक और नास्तिक दोनों प्रकार के दर्शन एक साथ मौजूद हैं और भारत ने हमेशा विविधता को स्वीकारा है। भारत में जबरन एकता के बजाय विविधता में एकता के सिद्धांत को मानते हुए जीने की परंपरा रही है। डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा ने अपने संबोधन में कहा कि यदि महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित रामराज्य की परिकल्पना साकार हो जाती, तो शायद पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानवतावाद की आवश्यकता नहीं होती। इस दौरान दयाशंकर तिवारी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख करते हुए उनके सादगीपूर्ण जीवन पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का प्रारंभिक परिचय अतुल द्विवेदी ने दिया, जबकि संचालन अनिल मालोकर ने किया। धन्यवाद ज्ञापन अभिषेक तिवारी ने किया।
