
नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को स्वयंसेवकों से संवाद करते हुए कहा, “समाज को जातिगत भेदभाव छोड़कर समरस और समावेशी राष्ट्र की ओर बढ़ना चाहिए। संघ का काम व्यक्ति का विकास करना है। व्यक्ति के विकास से परिवार, समाज, राष्ट्र और पूरी मानवता के प्रति जिम्मेदारी का भाव जागृत होता है।”
मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों से उनके क्षेत्र में चल रही शाखाओं और सेवा कार्यों के बारे में जानकारी ली। मोहन भागवत ने कहा, “जिस क्षेत्र में शाखा लगती है, वहां के हर परिवार से संघ का संपर्क होना चाहिए।” मोहन भागवत ने कहा, “हम कहते हैं ‘वसुधैव कुटुंबकम’ – दुनिया एक परिवार है, इसी भावना के साथ संघ ने अपने कार्य का विस्तार समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किया है।”
सरसंघचालक ने कहा, “संघ कार्यकर्ताओं और समाज के सहयोग से देशभर में लाखों सेवा कार्य किए जा रहे हैं। जो समाज में सकारात्मक बदलाव का उदाहरण है। वर्तमान में संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुका है। पंच परिवर्तन के सिद्धांत पर काम करते हुए संघ समाज को जागरूक, जिम्मेदार और संवेदनशील बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।”
मोहन भागवत ने कहा,“ऐसा समाज होना चाहिए जो राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पहचाने। हमें पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली अपनानी चाहिए। जातिगत असमानता से मुक्ति पाएं। मंदिर, जलाशय और श्मशान जैसे सार्वजनिक संसाधनों के बारे में पूरी समझ होनी चाहिए। यही सच्ची सामाजिक समरसता है।”