
मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महायुति की प्रचंड जीत के बाद जब सीएम फडणवीस ने नागपुर में मंत्रिमंडल का विस्तार किया था तब छगन भुजबल को मंत्रिमंडल से बाहर रहना पड़ा था। मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज भुजबल नागपुर से सीधे नासिक चले गए थे। तब उन्होंने एक यह कहा था कि जहां नहीं चैना…वहां नहीं रहना। उन्होंने खुली नाराजगी दिखाई और कहा कि वह अपने लोगों से विचार विमर्श के बाद आगे का फैसला लेंगे। इसके लिए समता परिषद की बैठकें लीं। हालांकि काफी विवाद होने के बाद भी भुजबल पार्टी में बने रहे। करीब छह महीने बाद छगन भुजबल एक बार फिर मंत्री बन गए हैं। उनकी वापसी के पीछे प्रेशर पॉलिटिक्स का हवाला दिया जा रहा है
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि शरद पवार को मेंटर मानने वाले छगन भुजबल समता परिषद के जरिए यह संदेश देने में सफल रहे कि उनकी नाराजगी से एनसीपी को नुकसान हो सकता है, अजित पवार के साथ उनके पिछले छह महीने में संबंध सामान्य ही रहे, हालांकि दूसरी ओर पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ नजदीकी बढ़ाते रहे। एक्सपर्ट कहते हैं कि यह प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा था। इसी बीच जब बीड के सरंपच की हत्या में धनंजय मुंडे का इस्तीफा हुआ तो भुजबल के लिए मंत्रीमंडल में लौटने की उम्मीद बढ़ गई क्योंकि फडणवीस सरकार में एनसीपी के कोटे की एक बर्थ खाली हो गई। राजनीतिक हलकों में अटकलें हैं कि स्थानीय निकाय चुनाव को देखते हुए अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने छगन भुजबल को मंत्री बनाकर खुश करने की कोशिश की है। छगन भुजबल की अगुवाई वाली समता परिषद की ओबीसी वर्ग में अच्छी पैठ है। भुजबल के मंत्री बनने से अच्छा संदेश जाएगा। एक्सपर्ट कहते हैं कि अजित पवार ने भुजबल की वापसी कराकर जहां ओबीसी वर्ग को खुश करने की कोशिश की है तो वहीं उन्होंने भुजबल को भी यह संदेश दे दिया है कि वह चाहे तो किसी को भी बाहर बैठा सकते हैं। उन्होंने ऐसा करके अपनी पावर दिखा दी है। ऐसा कहा जा रहा है कि जब केंद्र सरकार देश में जाति जनगणना के लिए आगे बढ़ रह है तब अजित पवार पार्टी के सबसे बड़े ओबीसी चेहरे को और नाराज नहीं रख सकते थे।
भुजबल महाराष्ट्र के उन कुछ नेताओं में शामिल हैं जो 75 पार होने के बाद भी राजनीतिक में खुद को प्रासंगिक बनाए हुए हैं। पिछले साल दिसंबर में जब फडणवीस ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया था तब भुजबल के साथ एनसीपी के ही दिलीप वाल्से पाटिल तथा बीजेपी के मुनगंटीवार और विजयकुमार गावित को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली थी। इसके बाद सिर्फ भुजबल ही मंत्रिमंडल में लौटे हैं। भुजबल ने राजनीति की शुरुआत शिवसेना से की थी। 1991 से 1999 तक शिवसेना में रहने के बाद वह 1999 में एनसीपी में आए थे। इसके बाद से वह एनसीपी में हैं। अजित पवार ने जब चाचा शरद पवार का साथा छोड़ा था। तब भुजबल भी अजित के साथ चले गए थे और फिर शिंदे सरकार में मंत्री बने थे। भुजबल की अहमियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने अजित पवार के साथ शपथ ली थी। भुजबल दो बार राज्य के डिप्टी सीएम भी रह चुके हैं। वह राज्य के गृह विभाग के साथ पीडब्ल्यूडी विभाग को संभाल चुके हैं।