
नागपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने कहा कि आधुनिक तकनीकी युग में शिक्षा जगत के सामने कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन शिक्षक की भूमिका आज भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण बनी हुई है। विद्यार्थियों को इंटरनेट और समाज माध्यम से जानकारी आसानी से मिल जाती है, फिर भी शिक्षक के बिना उनका जीवन अधूरा है। शिक्षक ही विद्यार्थियों को सही दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। डॉ. भागवत सोमलवार शिक्षण संस्था के 70वें संस्थापक दिवस समारोह में संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर सोमलवार शिक्षण संस्था के उपाध्यक्ष रामदास सोमलवार और सचिव प्रकाश सोमलवार भी उपस्थित थे। डॉ. भागवत ने शिक्षा के उद्देश्य पर चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा केवल पेट भरने का साधन नहीं है, बल्कि यह ‘मनुष्य’ बनने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मानवता की रक्षा, मानवीय गुणों का सिंचन और जतन करना है, जिसमें शिक्षकों की शाश्वत भूमिका हमेशा रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि चुनौतियाँ समय के साथ बदलती हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ शाश्वत होती हैं। उदाहरण के तौर पर, लोकमान्य तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने लेख में कहा था, “ग्रंथ ही हमारे गुरु हैं”, जबकि आज पुस्तकों की भूमिका कम हो रही है और लोग अधिकांश जानकारी गूगल से प्राप्त करने लगे हैं। बावजूद इसके, डॉ. भागवत ने जोर देकर कहा कि संसार में सब कुछ बदल सकता है, लेकिन शिक्षक की आवश्यकता विद्यार्थी के जीवन में हमेशा बनी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास, धर्म और संस्कृति के प्रति असत्य प्रचार किया, लेकिन स्वामी विवेकानन्द, योगी अरविन्द और तिलक जैसे नायक हमारे देश में पैदा हुए, क्योंकि उनके शिक्षक स्वदेशी भाव से प्रेरित थे। आज भी विद्यार्थियों में परिवार, समाज और राष्ट्र की सेवा का भाव जाग्रत करने के लिए शिक्षकों को बड़ी भूमिका निभाने की आवश्यकता है।