
मुंबई. मराठा साम्राज्य के वीर सेनानी और नागपुरकर भोसले घराने के संस्थापक सरदार रघुजी भोसले की ऐतिहासिक तलवार जो हाल ही में लंदन में नीलामी में रखी गई थी, उसे महाराष्ट्र सरकार ने सफलतापूर्वक प्राप्त कर लिया है। इस बात की जानकारी राज्य के संस्कृति कार्य मंत्री एडवोकेट आशीष शेलार ने आज दी। यह पहली बार है जब महाराष्ट्र सरकार ने किसी ऐतिहासिक धरोहर को विदेश में हुई नीलामी से वापस लाने में सफलता पाई है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए मंत्री शेलार ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का विशेष आभार व्यक्त किया। तलवार की नीलामी की खबर कल अचानक सामने आई, जिसके तुरंत बाद एड. शेलार ने मुख्यमंत्री से चर्चा कर इस धरोहर को हासिल करने की दिशा में त्वरित योजना बनाई। संस्कृति कार्य विभाग के अपर मुख्य सचिव विकास खारगे को इस कार्य की जिम्मेदारी सौंपी गई और दूतावास से संपर्क कर पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार एक मध्यस्थ के माध्यम से सरकार ने नीलामी में भाग लिया और तलवार प्राप्त की। तलवार को भारत लाने, हैंडलिंग, ट्रांसपोर्ट और बीमा मिलाकर कुल लागत लगभग 47.15 लाख रुपये आई है। एड. शेलार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व में यह ऐतिहासिक कार्य संपन्न हुआ है। रघुजी भोसले प्रथम (1695–1755) मराठा सेना के प्रमुख सरदारों में से एक थे और छत्रपति शाहू महाराज के शासनकाल में उन्होंने बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, चांदा, और दक्षिण भारत तक मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। उन्हें ‘सेनासाहिबसुभा’ की उपाधि दी गई थी। लंदन में प्राप्त हुई उनकी तलवार ‘फिरंग’ शैली की है, जो मराठा हथियार निर्माण की कलात्मकता और युरोपीय तकनी का संगम है। तलवार के पत्ते पर ‘श्रीमंत रघोजी भोसले सेनासाहिबसुभा फिरंग’ यह देवनागरी में सोन्ये की पॉलिश से लिखा गया है। इस तलवार पर सुंदर नक्काशी, कोफ्तगरी और मुट्ठी पर हरे कपड़े की लपेट तलवार की भव्यता को दर्शाती है। यह प्रमाणित करता है कि यह तलवार विशेष रूप से रघुजी भोसले के लिए बनाई गई थी। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार, 1817 में नागपुर की सीताबर्डी की लड़ाई के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने भोसले घराने का खजाना लूटा था, जिसमें यह तलवार भी शामिल हो सकती है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह तलवार युद्ध के बाद की लूट या ब्रिटिशों को दी गई भेंट के रूप में देश से बाहर गई थी। इस तलवार की भारत वापसी मराठा इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।