आधुनिकता की परिभाषा में खो रही मानवता

बेंगलुरु के जीटी मॉल की एक घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम सच में एक प्रगतिशील समाज की ओर बढ़ रहे हैं या केवल एक दिखावटी आधुनिकता को अपनाते जा रहे हैं। इस घटना में धोती पहने एक बुजुर्ग व्यक्ति को मॉल में प्रवेश न देने का मामला सामने आया, जो न केवल अनुचित बल्कि अमानवीय भी है।

यह घटना उस समय हुई जब एक बुजुर्ग व्यक्ति, जो पारंपरिक धोती पहने हुए थे, मॉल में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे। मॉल के गार्ड्स ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि उनकी पोशाक आधुनिक नहीं है और यह मॉल के ‘ड्रेस कोड’ के अनुरूप नहीं है। यह स्थिति न केवल उस बुजुर्ग व्यक्ति के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि हमारे समाज की मानसिकता पर भी सवाल उठाती है।

कर्नाटक सरकार ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए जीटी मॉल को सात दिनों के लिए बंद करने का आदेश दिया है। यह कार्रवाई एक संदेश है कि किसी भी व्यक्ति के साथ उसके पहनावे के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह समाधान पर्याप्त है? क्या यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों?यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि आधुनिकता का मतलब केवल पश्चिमी पहनावे को अपनाना नहीं है। हमारी संस्कृति और परंपराएं हमारी पहचान का हिस्सा हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। धोती, जो हमारे देश की पारंपरिक पोशाक है, न केवल एक वस्त्र है, बल्कि हमारी संस्कृति का प्रतीक भी है। इसे पहनने वाले व्यक्ति का सम्मान करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।बुजुर्ग व्यक्ति, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने समाज और देश के लिए योगदान दिया है, उनके साथ ऐसा व्यवहार न केवल अनुचित बल्कि अशोभनीय भी है। हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां हम अपने बुजुर्गों का सम्मान करने की बात करते हैं, लेकिन जब बात अमल में लाने की आती है तो हम अक्सर असफल हो जाते हैं। हमें यह समझना होगा कि आधुनिकता और प्रगति का मतलब केवल तकनीकी और भौतिक विकास नहीं है, बल्कि यह हमारे मूल्यों और नैतिकताओं में भी झलकना चाहिए।

जीटी मॉल की इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हमारे समाज में अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे विकास की राह में कोई भी व्यक्ति पीछे न छूटे। हर व्यक्ति का सम्मान हो, चाहे वह किसी भी पहनावे में क्यों न हो।सरकार की इस कार्रवाई से उम्मीद है कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं में कमी आएगी और हमारे समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन आएगा। हमें यह याद रखना होगा कि हम सभी एक समान हैं और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए।जीटी मॉल की इस घटना ने हमारे समाज की सोच और मूल्यों पर गहरी चोट की है। एक बुजुर्ग व्यक्ति को उनके पहनावे के आधार पर प्रवेश न देना हमारे सामाजिक ताने-बाने में विद्यमान गहरे पूर्वाग्रहों को उजागर करता है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि आधुनिकता केवल बाहरी दिखावे या पश्चिमी पहनावे को अपनाने से नहीं आती, बल्कि यह हमारे आचरण, विचारों और मूल्यों में भी झलकनी चाहिए।

धोती पहने बुजुर्ग व्यक्ति का अपमान हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने पारंपरिक मूल्यों और संस्कारों से कितना दूर हो चुके हैं। हमारे देश की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर हमारी पहचान है, और इसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।सरकार द्वारा मॉल को सात दिनों के लिए बंद करना एक सख्त संदेश है कि ऐसे भेदभावपूर्ण व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन असल बदलाव तभी आएगा जब हम सभी अपने दैनिक जीवन में समानता और सम्मान की भावना को आत्मसात करेंगे।हमें यह समझना होगा कि सच्ची आधुनिकता और प्रगति का अर्थ है हर व्यक्ति के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना, चाहे वह किसी भी पहनावे या पृष्ठभूमि से हो। यही हमारे समाज की सच्ची प्रगति और विकास का मार्ग है।

इस घटना ने हमें यह सिखाया है कि हमें अपनी सोच को विस्तृत करना होगा और अपने समाज को एक ऐसा स्थान बनाना होगा जहां हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बुजुर्ग, जो हमारी धरोहर हैं, उन्हें हमेशा सम्मान और गरिमा के साथ देखा जाए। यही हमारे समाज की सच्ची प्रगति होगी।

प्रणव सातोकर,नागपूर
#Pranav Satokar
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