
नागपुर का रहने वाला 10 महीने का बच्चा मोहम्मद अब्बास बिलीअरी अट्रेसिया नाम की बीमारी से पीड़ित था। इस बीमारी में बच्चे के शरीर में जन्म के समय से ही पित्ताशय और पित्त ले जानी वाली नलियाँ पूरी तरीक़े से नहीं बनी होती हैं और इसकी वजह से धीरे-धीरे बच्चे का लिवर फेल होने लगता है। अब्बास का लिवर ख़राब होने की वजह से उसको पीलिया था और उसके पेट में पानी भरा हुआ था । अपचन की वजह से उसका वजन सिर्फ़ 6 किलो था जो अपनी उम्र के नोर्मल बच्चों से कम था।
न्यू एरा हॉस्पिटल में डॉ राहुल सक्सेना से मिलने के पहले अब्बास के माता-पिता दिल्ली और मुंबई के कई बड़े अस्पतालों में परामर्श के लिए गए थे लेकिन उसकी कम उम्र और बहुत ही कम वजन होने की वजह से उन्हें ऑपरेशन के लिए मना कर दिया गया था। अब्बास के परिवार ने हताश होकर बच्चे के 6 महीने से ज्यादा जीवित रहने की उम्मीद छोड़ दी थी ।
न्यू एरा हॉस्पिटल में डॉ राहुल सक्सेना के नेतृत्व में आठ डॉकटरों की टीम ने 21 जून को इस ऑपरेशन को अंजाम दिया।इसमें लिवर ट्रांसप्लांट ऐनेस्थेटिस्ट डॉ साहिल बंसल और डॉ आयुष्मा जेज़ानी, पीडीऐट्रिक हीपेटोलोजिस्ट डॉ निशु बंसल, नीओनेटोलोजिस्ट डॉ स्वप्निल भीसीकर और पीडीऐट्रिक इंटेंसिविस्ट डॉ आनंद भुतड़ा शामिल थे । इस ऑपरेशन को पूरा होने में लगभग 16 घंटों का समय लगा। अब्बास के माता-पिता का ब्लड ग्रूप अलग होने की वजह से दोनों ही लिवर डोनेशन के लिए योग्य नहीं थे। इसलिए अब्बास को लिवर डोनेशन करने के लिए उसकी मौसी सामने आयी। उसकी मौसी के शरीर से लिवर का बायाँ भाग काट के निकाला गया। डोनर को पाँचवें दिन ही छुट्टी दे दी गयी। अब्बास को दो हफ़्ते में हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया और वो अब घर पर पूरी तरह से स्वस्थ है।
ख़ास बात ये है की इस ऑपरेशन के खर्चे के लिए अब्बास के परिवार से किसी भी प्रकार की धनराशि नहीं ली गयी। हॉस्पिटल ने इस ऑपरेशन का पूरा खर्चा विभिन्न एनजीओ और क्राउड फ़ंडिंग संस्थाओं के माध्यम से इकट्ठा किया।
लिवर प्रत्यारोपण सर्जन डॉ राहुल सक्सेना ने बताया कि इतने छोटे बच्चे में लिवर प्रत्यारोपण की सर्जरी बेहद जटिल होती है क्योंकि बड़ी उम्र के डोनर से निकाले गए लिवर के भाग को साइज़ में छोटा करना पड़ता है ताकि उसे बच्चे के छोटे शरीर में फ़िट किया जा सके। इसके साथ ही बच्चों में रक्त की नसें बहुत छोटी-छोटी होती हैं और इनको जोड़ने में काफ़ी समय लगता है। नसें जोड़ने के बाद उनके अंदर खून की गुठलियाँ ना बने इसके लिए बच्चे को खून पतला करने की दवाई दी जाती है।
लिवर ट्रांसप्लांट ऐनेस्थेटिस्ट डॉ साहिल बंसल और डॉ आयुष्मा जेज़ानी ने बताया की इतने छोटे बच्चों में सूंघनी देना भी अपने आप में एक मुश्किल काम है। इन बच्चों की श्वास नलिका छोटी और बेहद नाज़ुक होती है और इतनी लम्बी सर्जरी के दौरान काफ़ी सजगता रखनी पड़ती है।
न्यू एरा हॉस्पिटल में पीडीऐट्रिक हीपेटोलोजिस्ट डॉ निशु बंसल ने कहा कि बच्चों में लिवर ट्रांसप्लांट के मामले चुनौतिपूर्ण होते हैं क्योंकि उनको शरीर के वजन के अनुसार दवाइयों की खुराक देनी होती है। इसके साथ ही ऑपरेशन के बाद अब्बास का अपना इम्यून सिस्टम उसके नए लिवर को रेजेक्ट ना करे इसलिए उसकी इम्यूनिटी कम करने के लिए स्पेशल दवाइयाँ दी जाती हैं। क्योंकि इम्यूनिटी कम होने से नए इन्फ़ेक्शन होने का ख़तरा बनेगा इसलिए कुछ सावधानियाँ रखनी पड़ेगी।
डॉ राहुल सक्सेना ने बताया कि अब्बास का नया लिवर ठीक तरीक़े से काम कर रहा है या नहीं ये देखने के लिए ट्रांसप्लांट टीम रेगुलर तरीक़े से उसका फ़ॉलो-अप रख रही है। इसके लिए ब्लड टेस्ट और सोनोग्राफ़ी करनी पड़ती है।
ट्रांसप्लांट के बाद के जीवन से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए नीओनेटोलोजिस्ट डॉ स्वप्निल भीसीकर ने कहा कि एक सफल ऑपरेशन के बाद इन बच्चों का जीवन बिलकुल सामान्य हो जाता है और ये लम्बी उम्र बिता सकते हैं।
डॉ राहुल सक्सेना ने न्यू एरा हॉस्पिटल में सन 2018 में मध्य भारत का पहला लिवर प्रत्यारोपण किया था और तबसे अब तक उनकी टीम यहाँ पचास से ज़्यादा लिवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक कर चुकी है। छोटे बच्चों का लिवर ट्रांसप्लांट की सुविधा यहाँ शुरू होने के बाद अब इस क्षेत्र के मरीज़ों को इस जटिल सर्जरी के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी ।
मॅनेजमेंट टीम, न्यूरा हॉस्पिटलचे डायरेक्टर डॉ आनंद संचेती कार्डियाक सर्जन, डॉ नीलेश अग्रवाल न्यूरो सर्जन, डॉ निधीश मिश्रा कार्डिओलॉजिस्ट यांनी रुग्णांसाठी क्राउड फंडिंगसह सर्व बाबतीत टीमला मदत केली.