नागपुर. मेडिकल संस्थानों की बदहाल व्यवस्था और सेवा-सुविधाओं की कमी को लेकर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। गुरुवार को सुनवाई के दौरान मेडिकल उपकरण खरीद प्राधिकरण (Medical Equipment Purchase Authority) के सीईओ के खिलाफ 50,000 रुपए का जमानती वारंट जारी किया गया। यह कदम सीईओ की कोर्ट में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया, क्योंकि पूर्व में जारी नोटिस के बावजूद वे कोर्ट में पेश नहीं हुए थे। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस याचिका में उठाए गए मुद्दों पर विचार करने के लिए सीईओ की उपस्थिति आवश्यक है। वरिष्ठ अधिवक्ता फिरदौस मिर्जा ने इस मामले में विशेष वकील के रूप में पैरवी की।
2022 से डीपीसी नहीं हुई गठित
मेडिकल प्रशासन की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि 2022 के बाद से पदोन्नति के लिए आवश्यक विभागीय पदोन्नति समिति (DPC) का गठन ही नहीं किया गया है। कोर्ट ने जानकारी दी कि राज्य और विदर्भ क्षेत्र के मेडिकल शिक्षण संस्थानों में 35% पद खाली पड़े हैं, जबकि एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसरों के 50% रिक्त पद डीपीसी द्वारा पदोन्नति के जरिए भरे जाने हैं। हाई कोर्ट ने निर्देश दिए कि 18 दिसंबर तक डीपीसी का गठन कर रिक्त पद भरे जाएं और 19 दिसंबर को इसकी रिपोर्ट अदालत में पेश की जाए।
विक्रेताओं की आपूर्ति रोकने की संभावना
सुनवाई के दौरान अदालत मित्र अनुप गिल्डा ने कोर्ट को बताया कि मेयो और मेडिकल संस्थानों के बिलों का भुगतान ट्रेजरी द्वारा नहीं किया जा रहा है, जबकि पीएलए खाते में अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध है। इसके चलते विक्रेता आपूर्ति रोक सकते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता मिर्जा ने जानकारी दी कि GMC और IGGMC के 6 करोड़ रुपए के बिल पहले ही ट्रेजरी को भेजे जा चुके हैं। ट्रेजरी द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब भी दिया गया है, फिर भी भुगतान लंबित है। अतिरिक्त सरकारी वकील ठाकरे ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि एक सप्ताह के भीतर इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।